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बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2644
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान

प्रश्न- बालकों के संवेग कितने प्रकार के होते हैं? बालक तथा प्रौढों के संवेगों में अन्तर बताइये।

उत्तर -

बालकों के विशिष्ट संवेग

बालक के विशिष्ट संवेगों में मुख्यतः दो संवेग होते हैं -

(i) दुःखद संवेग,
(ii) सुखद संवेग।

(1) दुःखद संवेग

भय - भय भीतर से अनुभव होने वाली ऐसी अनुभूति है, जिसके कारण प्राणी खतरनाक परिस्थितियों से भागता है। शैशवावस्था में बालक प्रायः जानवरों, अंधेरे स्थानों, ऊँचे स्थानों, अन्जान व्यक्तियों, ऊँची आवाजों आदि से डरता है। बाल्यावस्था में पहुँचाने तक उन उद्दीपकों तथा भय की तीव्रता में वृद्धि आ जाती है। 6 वर्ष की उम्र तक भय का संवेग अपनी चरम सीमा तक पहुँच जाता है। बच्चों में काल्पनिक भय भी आ जाता है।

भय का संवेग बालक के मानसिक तनाव तथा असमायोजन उत्पन्न करता है, इसलिए इस संवेग पर नियंत्रण आवश्यक है। नियंत्रण के लिए-

(1) बालक को तनावमुक्त रखा जाये। बालक जिस वातावरण में जिस वस्तु से डरता हो उससे दूर रखा जाये।

(2) बच्चा जिन वस्तुओं से डरता है उसे बार-बार उसके सामने लाने या अन्य लोगों के सामने दोहराने से बच्चा में हीनता की भावना आ जाती है।

(3) भय दूर करने के लिए Negative Adoptation Method अपनाया जा सकता है. जैसे बच्चा पानी से डरता है तो उसे अधिक से अधिक पानी में खेलने दें, जिससे उसका डर दूर हो जाये।

(4) बच्चे को सुरक्षा की भावना दी जाये।

क्रोध -  यह संवेग प्रत्येक बच्चे में अधिक मात्रा में होती है। बच्चा इस तीव्र सीख लेता है क्योंकि बच्चा काफी जल्दी यह समझ जाता है कि दूसरों का ध्यान आकर्षित करने का तरीका क्रोध प्रदर्शन है। यह क्रोध बच्चा व्यक्ति विशेष वस्तु के प्रति प्रकट करता है। क्रोध में बालक आक्रामक हो जाता है। वह मारना पीटना, काटना, झटका देना, थूकना आदि व्यवहार अपनाता है। कुछ बच्चा क्रोध में तटस्थता का व्यवहार अपनाते हैं। बच्चा क्रोधित होने पर आक्रामक होगा या तटस्थ होगा, यह निश्चित ज्ञात नहीं होता है।

क्रोध अपने पर शारीरिक व मानसिक सन्तुलन दोनों बिगड़ जाता है इसलिए इससे पूर्व कि बालक को गुस्सा आये उसके हाव-भाव देखकर उसी के अनुसार व्यवहार करना चाहिए, पर अभिभावक यह भी ध्यान रखे कि उनका व्यवहार ऐसा हो कि बच्चा यह न जान पाय कि उसके क्रोध को दूर करने के लिए किसी विशेष प्रकार की प्रक्रिया की जा रही हैं अन्यथा वह इसका लाभ उठायेगा। जब बच्चा क्रोध में हो तो उसका ध्यान उस ओर से हटाकर दूसरी ओर लगाना चाहिए। बच्चे का गुस्सा दूर करने के लिए स्वयं गुस्से में आकर उसे डांटना नही चाहिए। बार-बार डांटने से बच्चा दब्बू हो जाता है। शान्त होने पर बच्चों को क्रोध करने से क्या हानियाँ होती हैं, समझानी चाहिए।

यदि बच्चा क्रोध में जोर-जोर रोये, चिल्लाए, पीटे तो ऐसे बच्चों को एकदम छोड़ देना चाहिए। ऐसे में उसे छेड़ने पर वो और अधिक शोर करेगा उसे छोड़ देने पर वह देखता है कि कोई उसे महत्व नहीं दे रहा है तो वह कुछ देर में थक कर शान्त हो जाता है।

ईर्ष्या -  ईर्ष्या का मुख्य कारण है कि बालक किसी बात से नाराज है। ईर्ष्या का जन्म क्रोध से होता हैं। डेढ़ वर्ष की उम्र में ईर्ष्या संवेग का प्रारम्भ होता है। 34 वर्ष की उम्र में तीव्रता आ जाती है। लड़कों की अपेक्षा लड़कियों में इस संवेग का भाव अधिक होता है। उसी प्रकार मन्द बुद्धि वाले बच्चों में तीव्र बुद्धि वाले बच्चे की अपेक्षा ईर्ष्या अधिक होती है।

यह संवेग बच्चे के लिए हानिकारक है। इससे बच्चों के शारीरिक विकास में बाधा पहुँचती है। इसके नियंत्रण के लिए -

(1) बच्चों को कभी अधिक उत्तेजित नहीं होने देना चाहिए।

(2) परिवार में नये मेहमान (दूसरा बच्चा) के आने के पहले बच्चे को मानसिक रूप से इसके लिए तैयार करना चाहिए।

(3) बच्चों को अधिक तंग न किया जाये।

(4) बच्चों के साथ नकारात्मक व्यवहार नहीं करना चाहिए।

(5) अस्वस्थ बच्चों में ईर्ष्या की भावना अधिक होती है इसीलिए उसके स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।

(6) घर के सभी बच्चों के प्रति अभिभावकों को अपना व्यवहार एक सा रखना चाहिए।

चिन्ता - भय संवेग के बाद चिन्ता का उदय होता है। वे बच्चे जो अधिकतर काल्पनिक जगत में रहते है। दिवास्वप्न देखते हैं, उनमें ये संवेग अधिक पाया जाता है। जब बालक में काल्पना शाक्ति का विकास होता है तभी यह संवेग जन्म लेता है। यह बाल्यावस्था में प्रारम्भ होता है। चिन्ता के कारण लड़कियाँ दिवास्वप्न अधिक देखने लगती हैं, जबकि लड़के चिन्ता छिपाने के कारण विद्रोही बन जाते हैं।

शर्मीलापन - यह एक प्रकार का भय है कि बच्चों को नये लोगों के साथ मिलने पर अनुभव होता है। बच्चों को नये लोगों के साथ मिलने पर शर्म आती है। जैसे-जैसे उम्र का विकास होता है यह भाव दूर होता जाता है। ये संवेग बच्चों के लिए हानिकारक है, क्योंकि शर्म के कारण बच्चा दूसरों से दोस्ती, बातचीत नहीं कर पाता है। इसलिए उसे मानसिक समायोजन में मुश्किल होती है। समूह में इस प्रकार के बालक पसन्द नहीं किय जाते हैं।

परेशानी - यह भी एक प्रकार का काल्पनिक भय हैं। जब बच्चे में कल्पना शक्ति तथा बौद्धिक योग्यताओं का विकास होता है तब इसका प्रारम्भ होता है। बच्चों की परेशानियाँ, परिवार, मित्र तथा स्कूल से सम्बन्धित होती है।

(2) सुखद संवेग

जिज्ञासा - जिज्ञासा बालक के लिए नयी बातें सीखने समझने में सहायक होती है। जिज्ञासा बच्चों को उत्तेजित करती है। यह एक सुखद भावना ही होती है। जब तक बच्चा विद्यालय नहीं जाता, परिवार की वस्तुओं के प्रति जिज्ञासा होती है। 3 वर्ष की उम्र का बालक अपनी जिज्ञासा की पूर्ति प्रश्नों को पूछ कर करता है। जिज्ञासा बच्चों के जीवन को सुखद तथा रुचिकर बनाती है। जिज्ञासा बच्चों के बौद्धिक विकास में भी सहायक होती है।

आनन्द या सुख - आनन्द या सुख का मुख्य सम्बन्ध शारीरिक स्वास्थ्य से है। स्वस्थ बच्चा ही इस संवेग को प्राप्त कर सकता है। जन्म के 3 माह के बाद ही बच्चा इस संवेग को चेहरे के भाव द्वारा स्पष्ट करता है। माँ की गोद में दूध मिलने पर उसके चेहरे में प्रसन्नता दिखाई देती है। इस संवेग को बच्चा हंसकर किलकारियाँ मारकर प्रकट करता है। शैशवावस्था में बच्चा हंसकर. आवाज निकालकर, हाथ-पाँव मारकर खुशी प्रकट करता है।

स्नेह यह एक ऐसा संवेग है जो कि बालक को दूसरी ओर आकर्षित करता है। बच्चे को सुख की अनुभूति होती है। बच्चा इस संवेग का प्रदर्शन सबसे पहले दो-ढाई माह की उम्र में माँ के प्रति करता है। वह माँ की ओर देखकर मुस्कराता है। वास्तव में इस संवेग का अनुकरण 6 माह की उम्र में होता है। दो-ढाई माह की उम्र में माँ को देखकर मुस्कराना एक उद्दीप्राप्तवस्था है। 1 वर्ष की उम्र में बच्चा जानवरों व खिलौनों से खेह प्रकट करने लगता है।

बालक तथा प्रौढ़ों के संवेगों में अन्तर - बच्चों तथा वयस्क परिपक्व व्यक्ति के संवेगों में अन्तर होता है। बच्चों तथा प्रौढ़ों के संवेगों की संख्या व उनकी परिपक्वता में अन्तर होते हैं। उसी प्रकार दोनों प्रकार के संवेगों के प्रकटीकरण के ढंग में भी अन्तर होता है।

क्र.सं. बालकों के संवेग प्रौढ़ के संवेग
1. बालकों के संवेगों में आवृत्ति अधिक होती है। एक ही दिन में एक ही संवेग बार- बार थोडी-थोड़ी देर में उत्पन्न होता है। बालकों में संवेग जल्दी-जल्दी उत्पन्न होते हैं। प्रौढ़ व्यक्तियों के संवेगों में पुनरावृत्ति जल्दी नहीं होती है, क्योंकि वे हर बात का कारण जानते हैं।
2. बालकों के संवेग क्षणिक होते है उनमें जो भी संवेग उत्पन्न होता है वह शीघ्र ही समाप्त हो जाता है। बच्चे पल में गुस्सा हो जाते हैं व रोने लगते हैं और दूसरे ही क्षण प्रसन्न हो जाते हैं। बच्चों में अनुभव तथा बुद्धि की कमी के कारण संवेग उत्पन्न होते हैं। बालकों का ध्यान तथा स्मृति का विस्तार कम होने के कारण उनके संवेग जल्दी समाप्त भी हो जाते हैं। प्रौढ़ों के संवेग बालकों के संवेग की अपेक्षा लम्बे समय तक रहते हैं, क्योंकि प्रौढ़ों में बालकों की अपेक्षा बुद्धि तथा अनुभव अधिक होता है। वे संवेग उत्पन्न होने के कारण तथा उसे प्रभावित करने वाली परिस्थितियों को समझते हैं। स्मृति व ध्यान का विस्तार होने के कारण वे बात को भूलते नहीं है। इसलिए लम्बे समय तक रहते हैं।
3. बुद्धि की कमी के कारण बालक अपने संवेगों पर नियंत्रण नहीं कर पाते हैं। उनके संवेगों की तीव्रता अधिक होती है। अनुभव, बुद्धि की कमी के कारण बालक उसके संवेगों की तीव्रता की दूसरों पर क्या प्रतिक्रिया होती है। इसे समझ नहीं पाता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ अनुभव बढ़ने पर जब वह इन बातों को समझने लगता है। संवेगों की तीव्रता कम होने लगती है। प्रौढ़ों में संवेगों की तीव्रता बच्चों से कम होती है। वह अपने संवेगों पर नियंत्रण कर लेते हैं। अनुभव तथा मानसिक योग्यता के कारण वे अपने संवेगों पर नियंत्रण करना चाहते हैं। गुस्सा आने पर हाथ-पैर पटकना या बच्चों के समान जमीन पर लेटना नहीं शुरू कर देते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि संवेग प्रकट करने के ये ढंग उन्हें उपहास का कारण बना देंगे।
4. जैसे-जैसे बच्चों की उम्र बढ़ती है उसके संवेगों की शक्ति में परिवर्तन आता है। कुछ संवेग अधिक शक्तिशाली हो जाते है जबकि कुछ संवेगों की शक्ति घट जाती है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ यह परिवर्तन चलता रहता है। प्रौढ व्यक्ति परिपक्वता प्राप्त कर लेता है। इसलिए उसके संवेगों में स्थिरता आ जाती है।
5. प्रत्येक बच्चे की संवेगात्मक अनुक्रियाएँ अलग-अलग होती हैं। शैशवावस्था तक बच्चे की संवेगात्मक अनुक्रियायें एक सी होती हैं। उसके बाद उम्र बढ़ने के साथ-साथ संवेगात्मक अनुक्रियाओं में व्यक्तिगत भिन्नता आ जाती है। ये विभिन्नता अलग-अलग अनुभव तथा मानसिक योग्यता के कारण होती हैं। प्रौढ़ व्यक्तियों के सामाजिक स्तर, अनुभव मानसिक योग्यता के कारण उसकी संवेगात्मक अनुक्रियाओं में विभिन्नता पाई जाती है।
6. बच्चे अपने संवेगों की अभिव्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से करते हैं उनके चेहरे पर संवेगों के भाव एकदम प्रकट हो जाते हैं। बालकों की क्रियाओं से उनके संवेगों का आसानी से पता चल जाता है। प्रौढ़ व्यक्ति अपने संवेगों की अभिव्यक्ति में वही ढंग प्रयुक्त करते हैं, जो समाज को मान्य होते हैं तथा परिस्थितियों के अनुकूल होते हैं। इसीलिए वे अपने संवेग दबा लेते हैं। उनका पता नहीं चल पाता है।


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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आहार आयोजन से आप क्या समझती हैं? आहार आयोजन का महत्व बताइए।
  2. प्रश्न- आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
  3. प्रश्न- आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- एक खिलाड़ी के लिए एक दिन के पौष्टिक तत्वों की माँग बताइए व आहार आयोजन कीजिए।
  5. प्रश्न- एक दस वर्षीय बालक के पौष्टिक तत्वों की मांग बताइए व उसके स्कूल के लिए उपयुक्त टिफिन का आहार आयोजन कीजिए।
  6. प्रश्न- "आहार आयोजन करते हुए आहार में विभिन्नता का भी ध्यान रखना चाहिए। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- आहार आयोजन के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- दैनिक प्रस्तावित मात्राओं के अनुसार एक किशोरी को ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
  9. प्रश्न- सन्तुलित आहार क्या है? सन्तुलित आहार आयोजित करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
  10. प्रश्न- आहार द्वारा कुपोषण की दशा में प्रबन्ध कैसे करेंगी?
  11. प्रश्न- वृद्धावस्था में आहार को अति संक्षेप में समझाइए।
  12. प्रश्न- आहार में मेवों का क्या महत्व है?
  13. प्रश्न- सन्तुलित आहार से आप क्या समझती हैं? इसके उद्देश्य बताइये।
  14. प्रश्न- वर्जित आहार पर टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- शैशवावस्था में पोषण पर एक निबन्ध लिखिए।
  16. प्रश्न- शिशु के लिए स्तनपान का क्या महत्व है?
  17. प्रश्न- शिशु के सम्पूरक आहार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  18. प्रश्न- किन परिस्थितियों में माँ को अपना दूध बच्चे को नहीं पिलाना चाहिए?
  19. प्रश्न- फार्मूला फीडिंग आयोजन पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- 1-5 वर्ष के बालकों के शारीरिक विकास का वर्णन करते हुए उनके लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- 6 से 12 वर्ष के बालकों की शारीरिक विशेषताओं का वर्णन करते हुए उनके लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- विभिन्न आयु वर्गों एवं अवस्थाओं के लिए निर्धारित आहार की मात्रा की सूचियाँ बनाइए।
  23. प्रश्न- एक किशोर लड़की के लिए पोषक तत्वों की माँग बताइए।
  24. प्रश्न- एक किशोरी का एक दिन का आहार आयोजन कीजिए तथा आहार तालिका बनाइये।
  25. प्रश्न- एक सुपोषित बच्चे के लक्षण बताइए।
  26. प्रश्न- वयस्क व्यक्तियों की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- वृद्धावस्था की प्रमुख पोषण सम्बन्धी आवश्यकताएँ कौन-कौन-सी हैं?
  28. प्रश्न- एक वृद्ध के लिए आहार योजना बनाते समय आप किन बातों को ध्यान में रखेंगी?
  29. प्रश्न- वृद्धों के लिए कौन से आहार सम्बन्धी परिवर्तन करने की आवश्यकता होती है? वृद्धावस्था के लिए एक सन्तुलित आहार तालिका बनाइए।
  30. प्रश्न- गर्भावस्था में कौन-कौन से पौष्टिक तत्व आवश्यक होते हैं? समझाइए।
  31. प्रश्न- स्तनपान कराने वाली महिला के आहार में कौन से पौष्टिक तत्वों को विशेष रूप से सम्मिलित करना चाहिए।
  32. प्रश्न- एक गर्भवती स्त्री के लिए एक दिन का आहार आयोजन करते समय आप किन किन बातों का ध्यान रखेंगी?
  33. प्रश्न- एक धात्री स्त्री का आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
  34. प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था क्या है? इसकी विशेषतायें बताइये।
  35. प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था का क्या अर्थ है? मध्यावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
  36. प्रश्न- शारीरिक विकास का क्या तात्पर्य है? शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले करकों को समझाइये।
  37. प्रश्न- क्रियात्मक विकास का क्या अर्थ है? क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए एवं मध्य बाल्यावस्था में होने वाले क्रियात्मक विकास को समझाइये।
  38. प्रश्न- क्रियात्मक कौशलों के विकास का वर्णन करते हुए शारीरिक कौशलों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक विकास के लिए किन मानदण्डों की आवश्यकता होती है? सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- समाजीकरण को परिभाषित कीजिए।
  41. प्रश्न- सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
  42. प्रश्न- बालक के सामाजिक विकास के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- समाजीकरण से आप क्या समझती हैं? इसकी प्रक्रियाओं की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- सामाजिक विकास से क्या तात्पर्य है? इनकी विशेषताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  45. प्रश्न- उत्तर बाल्यावस्था में सामाजिक विकास का क्या तात्पर्य है? उत्तर बाल्यावस्था की सामाजिक विकास की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  46. प्रश्न- संवेग का क्या अर्थ है? उत्तर बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास का वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ लिखिए एवं बालकों के संवेगों का क्या महत्व है?
  48. प्रश्न- बालकों के संवेग कितने प्रकार के होते हैं? बालक तथा प्रौढों के संवेगों में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- बच्चों के भय के क्या कारण हैं? भय के निवारण एवं नियन्त्रण के उपाय लिखिए।
  51. प्रश्न- संज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए। संज्ञान के तत्व एवं संज्ञान की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से क्या तात्पर्य है? इसे प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- भाषा से आप क्या समझते हैं? वाणी एवं भाषा का क्या सम्बन्ध है? मानव जीवन के लिए भाषा का क्या महत्व है?
  54. प्रश्न- भाषा- विकास की विभिन्न अवस्थाओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- भाषा-विकास से आप क्या समझती? भाषा-विकास पर प्रभाव डालने वाले कारक लिखिए।
  56. प्रश्न- बच्चों में पाये जाने वाले भाषा सम्बन्धी दोष तथा उन्हें दूर करने के उपाय बताइए।
  57. प्रश्न- भाषा से आप क्या समझती हैं? भाषा के मापदण्ड की चर्चा कीजिए।
  58. प्रश्न- भाषा से आप क्या समझती हैं? बालक के भाषा विकास के प्रमुख स्तरों की व्याख्या कीजिए।
  59. प्रश्न- भाषा के दोष के प्रकारों, कारणों एवं दूर करने के उपाय लिखिए।
  60. प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था में भाषा विकास का वर्णन कीजिए।
  61. प्रश्न- सामाजिक बुद्धि का आशय स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- 'सामाजीकरण की प्राथमिक प्रक्रियाएँ' पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- बच्चों में भय पर टिप्पणी कीजिए।
  64. प्रश्न- बाह्य शारीरिक परिवर्तन, संवेगात्मक अवस्थाओं को समझाइए।
  65. प्रश्न- संवेगात्मक अवस्था में होने वाले परिवर्तन क्या हैं?
  66. प्रश्न- संवेगों को नियन्त्रित करने की विधियाँ बताइए।
  67. प्रश्न- क्रोध एवं ईर्ष्या में अन्तर बताइये।
  68. प्रश्न- बालकों में धनात्मक तथा ऋणात्मक संवेग पर टिप्पणी लिखिए।
  69. प्रश्न- भाषा विकास के अधिगम विकास का वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- भाषा विकास के मनोभाषिक सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  71. प्रश्न- बालक के हकलाने के कारणों को बताएँ।
  72. प्रश्न- भाषा विकास के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- भाषा दोष पर टिप्पणी लिखिए।
  74. प्रश्न- भाषा विकास के महत्व को समझाइये।
  75. प्रश्न- वयः सन्धि का क्या अर्थ है? वयः सन्धि अवस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए - (a) वयःसन्धि में लड़के लड़कियों में यौन सम्बन्धी परिपक्वता (b) वयःसन्धि में लैंगिक क्रिया-कलाप (e) वयःसन्धि में नशीले पदार्थों का उपयोग एवं दुरूपयोग (d) वय: सन्धि में आहार सम्बन्धी आवश्यकताएँ।
  77. प्रश्न- यौन संचारित रोग किसे कहते हैं? भारत के प्रमुख यौन संचारित रोग कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- एच. आई. वी. वायरस क्या है? इससे होने वाला रोग, कारण, लक्षण एवं बचाव बताइये।
  79. प्रश्न- ड्रग और एल्कोहल एब्यूज डिसआर्डर क्या है? विस्तार से समझाइये।
  80. प्रश्न- किशोर गर्भावस्था क्या है? किशोर गर्भावस्था के कारण, लक्षण, किशोर गर्भावस्था से बचने के उपाय बताइये।
  81. प्रश्न- युवाओं में नशीले पदार्थ के सेवन की समस्या क्यों बढ़ रही है? इस आदत को कैसे रोका जा सकता है?
  82. प्रश्न- किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास, भाषा विकास एवं नैतिक विकास का वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- सृजनात्मकता का क्या अर्थ है? सृजनात्मकता की परिभाषा लिखिए। किशोरावस्था में सृजनात्मक विकास कैसे होता है? समझाइये।
  84. प्रश्न- किशोरावस्था की परिभाषा देते हुये उसकी अवस्थाएँ लिखिए।
  85. प्रश्न- किशोरावस्था की विशेषताओं को विस्तार से समझाइये।
  86. प्रश्न- किशोरावस्था में यौन शिक्षा पर एक निबन्ध लिखिये।
  87. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
  88. प्रश्न- किशोरावस्था क्या है? किशोरावस्था में विकास के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  89. प्रश्न- किशोरावस्था को तनाव या तूफान की अवस्था क्यों कहा गया है?
  90. प्रश्न- प्रारम्भिक वयस्कावस्था में 'आत्म प्रेम' (Auto Emoticism ) को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- किशोरावस्था से क्या आशय है?
  92. प्रश्न- किशोरावस्था में परिवर्तन से सम्बन्धित सिद्धान्त कौन से हैं?
  93. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- आत्म की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
  95. प्रश्न- शारीरिक छवि की परिभाषा लिखिए।
  96. प्रश्न- प्राथमिक सेक्स की विशेषताएँ लिखिए।
  97. प्रश्न- किशोरावस्था के बौद्धिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  98. प्रश्न- सृजनात्मकता और बुद्धि में क्या सम्बन्ध है?
  99. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था से आप क्या समझते हैं? प्रौढ़ावस्था में विकासात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
  100. प्रश्न- प्रारंभिक वयस्कावस्था के मानसिक लक्षणों पर प्रकाश डालिये।
  101. प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं?
  102. प्रश्न- प्रारंभिक वयस्कतावस्था में सामाजिक विकास की विवेचना कीजिए।
  103. प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
  104. प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है? संक्षेप में लिखिए।
  105. प्रश्न- वृद्धावस्था में संज्ञानात्मक सामर्थ्य एवं बौद्धिक पक्ष पर प्रकाश डालिए।
  106. प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये।
  107. प्रश्न- युवा प्रौढ़ावस्था शब्द को परिभाषित कीजिए। माता-पिता के रूप में युवा प्रौढ़ों के उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए?
  109. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
  110. प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए।
  111. प्रश्न- उत्तर-वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।

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